पूरी तरह से जीना कब का भूल चूका हूँ मैं जिन्दा दिल शायरी, गिला शिकवा << आँखों को फोड़ डालूँ या दि... भूलकर हमें अगर तुम रहते ह... >> पूरी तरह से जीना कब का भूल चूका हूँ मैं, कुछ तुम में जिन्दा हूँ कूछ खुद मे बाकी हूँ मैं। Share on: